सेहतमंद बनाने के संग कुछ खास बीमारियां भी देते हैं पहाड़
सुमन कुमार
मौसम बदल रहा है और ऐसे में कई लोग बर्फ का मजा लेने अगले कुछ महीनों में पहाड़ों की यात्रा करने की योजनाएं बना रहे होंगे। पहाड़ों की यात्रा हमेशा ही एक खुशनुमा अनुभव देती है। मगर यदि तैयारी सही न हो और पहाड़ों पर होने वाली समस्याओं और बीमारियों के बारे में पूर्व जानकारी न हो तो ये यात्रा दुखदायी भी हो सकती है। इस आलेख में हम आपको खास पहाड़ों पर ही होने वाली कुछ स्वास्थ्य समस्याओं की जानकारी देंगे।
मौसम में अचानक बदलाव
पहाड़ों पर प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। मौसम में अचानक परिवर्तन पर्वत का खास गुण है और कई बार ये परिवर्तन भयावह होता है। अचानक बारिश या बर्फबारी किसी भी संकट का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा भूस्खलन भी बड़ा संकटकारक होता है। खासकर जिन पहाड़ों पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई हो वहां ये बहुत ही आम समस्या है। पहाड़ों पर बिजली गिरना भी आम है। पर्वतों पर काफी विस्मयकारी घटनाएं होती रहती हैं, जैसे शून्य से भी कम तापमान पर पर्वतों में तापमान आपेक्षिक रूप से कुछ गर्म होता है। अगर आसमान साफ हो और सूरज तेजी से चमक रहा हो। इसके विपरीत ऊंचे तापमान पर भी हमें ठंड महसूस हो सकती है, अगर ठंडी हवाएं चल रही हो। परंतु ऐसा होने पर तेज हवाओं से आपकी त्वचा झुलस सकती है, जिसे ‘विंड बर्न’ कहते हैं या फिर शरीर में जल की कमी हो सकती है, जिसे ‘डिहाइड्रेशन’ यानी निर्जलीकरण कहते हैं।
सांस की समस्या
ऊंचाई पर हवा के विरल होने पर वहां ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। पहाड़ों की ज्यादा ऊंचाई पर पहली बार जाने वाले लोगों को इस स्थिति के प्रति खुद को अनुकूल बनाना होता है। साधारणतः 7,000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर कृत्रिम ऑक्सीजन का उपयोग जरूरी होता है।
ऊंचाई से जुड़ी अन्य समस्याएं
पहाड़ों का मौसम निचले इलाकों में तो ठीक रहता है मगर 2,400 मीटर या इससे ज्यादा की ऊंचाई पर पर्वतीय बीमारियों के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें सिरदर्द, मितली आना, थकान, चक्कर आना, सांस फूलना, भूख कम लगना, पाचन क्रिया का बिगड़ जाना और कभी-कभी अचानक मृत्यु हो जाना भी संभव है।
कुछ घातक बीमारियां
पर्वतीय रोगों के अनेक रूपों में कुछ अति घातक रोग भी हैं जैसे ‘हाई एल्टिटयुड सेरेब्रल एडीमा’ और ‘हाई एल्टिटयुड पल्मोनरी एडीमा’ इन दोनों अवस्थाओं में रोगी 24 घंटों में ही मर सकता है। दर्दनाशक औषधि अथवा ‘स्टेरोयड’ का उपयोग इन रोगों में लाभप्रद हो सकता है।
सूर्य भी देता है कष्ट
पर्वतों की ऊंचाई पर हवा का घनत्व कम होने के कारण पराबैंगनी किरणों का प्रभाव बढ़ जाता है। इसके कारण वहां धूप तीखी और सीधी पड़ती है। इसके कारण त्वचा का जल जाना तथा अन्य चर्म रोगों का हो जाना सामान्य बात है। यहां तक कि बादल छाए रहने पर भी बर्फ से टकराकर लौट रही किरणें त्वचा को जला सकती हैं।
बर्फ सिर्फ कुछ देर ही आनंद देता है
मैदानी इलाकों से पहाड़ों पर गए लोगों को बर्फबारी बहुत लुभाती है। मगर इस बारे में कुछ बातें जानने योग्य हैं। अगर आप लंबे समय तक बर्फ में रहते हैं तो बर्फ से परावर्तित होने वाली किरणें अंधेपन का भी कारण बन सकती हैं। इसके कारण आंखें सूज जाती हैं, सिर में दर्द रहता है और चक्कर आने लगते हैं। इससे बचने के लिए धूप के चश्मे का इस्तेमाल करना चाहिए।
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